Saturday, August 23, 2014

विश्वमित्रा (भाग-१)




ट्रीन ट्रीन....वेक अप...अप...अप...अलार्म ने अपने पूरे जोश के साथ उसकी तंद्रा तोड़ी...हड्बड़ा कर उठी वह....हतप्रद दृष्टि चारों ओर डाली....शायद वह कल देर रात तक स्टडी मे ही बैठी थी.....शायद थक कर यहीं सो गयी थी...शायद.... पर उसे यह सबकुछ ठीक से याद क्यूँ नहीं आ रहा है......पास पड़े खाली ग्लास को उठा कर सूंघा.....पानी???? बस सादा पानी????
मतलब नशा भी नहीं था उसे कोई.........फिर यह क्या था जो उसे अंदर ही अंदर कचोट रहा था???? इतनी बेचैनी का कोई कारण भी तो होना चाहिए न.....खैर दो ग्लास ठंडा पानी हलक से नीचे उतारा.......इन सारी हलचलों को एक झटके से फेंकवह उठी.... अपने बालों को हाथों से हल्के से संवाराएक जूड़े मे उन्हे ढीला सा लपेट वह चल दी अपनी दिनचर्या को फिर से कसने के लिए....विश्वमित्रा राजपूतनाम के हिसाब से वह कुछ कमसिन ही थी....खूबसूरत थी...व्यवहारी थीएक अच्छी पत्नी और कार्यकुशल इंजीनियर थी वह.....कुल मिला कर जीवन के हर क्षेत्र मे वह एक सफल महिला थी.....लेकिन आज उसके कारण उसकी अपनी बहन अस्पताल मे ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रही थी...लेकिन विश्वमित्रा राजपूत.....जो सारी दुनिया की हितैषी थी...उसे कोई भी परवाह नहीं थी....28 की उम्र भी एक विकट समस्या है...30 तेज़ी से पास आ रहा है और 20 का साथ छूटे नहीं छूट  रहा है....सफलता आते आते अपने साथ कुछ झुर्रियां भी ला रही है.... उम्र छुपाने वाली क्रीम और बालों की सफेदी ढकने वाले डाई भी अभी कुछ सकुचा और शरमा कर ही दराज से निकलते हैं....इस उम्र तक आते आते जीवन के कुछ उतार चढ़ावोंहमारे चुने हुए विकल्पों और हमारे द्वारा लिए गए निर्णयों की परछाई हमारे चेहरों पर थोड़ी गहराने सी लगती है....फ्रेश हो कर वह फिर स्टडी मे आई .....समान वहीं फैला छोड़ कर जल्दी जल्दी न जाने क्या समेटने की कोशिश कर रही थी वो....वो जानना चाहती थी की वो खुद क्या सोच रही है....क्या उसे श्यामली की चिंता हो रही है???....क्या वो अपनी बहन से एक बार...बस एक बार मिलना चाहती है????....क्या आज उससे 5 मिनट बड़ी उसकी बहन उसकी वजह से इस हाल मे है???....फिर भी कहीं न कहीं उसे यह सब अच्छा क्यों लग रहा है???? पर कल शाम.....जब वो अपने होश ही खो बैठी थी.... और श्यामली....उसके साथ बीता वह ममतास्नेहअविश्वास से भरा आखिरी क्षण...अब उसके चेहरे पर एक गंभीर मुस्कान तैर गयी.....फोन उठा कर किसी का नंबर डायल करने लगी.....

विश्वमित्रा के स्वभाव मे एक विचित्र सी बात थी....वो किसी को कभी भी अपने से अधिक प्रशंसा पाते हुए नहीं देख पाती थी.... एक अजीब सी मौकापरस्ती थी उसमे कि जिन लड़कियों की वो सबसे अच्छी दोस्त थीकिसी लड़के का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपनी उन्ही दोस्तों की आलोचना करने मे ज़रा भी नहीं हिचकिचाती थी वो...लड़कों के बीच वो फ़ेमस भी बहुत थी...उसकी चालाकी भरी अदाओं मे भी वो बला कि सौम्यता थी हर कोई उसकी इस कशिश का दीवाना हो ही जाता था.....उसकी जुड़वा बहन श्यामली जो कि इससे बस 5 मिनट बड़ी थीइन अदाओं से कोसों दूर थी...श्यामली भी स्मार्ट थीआकर्षक थी लेकिन उसका रहन सहन साधारण था और बातों मे इतनी कुशल भी नहीं थी वो.... कुल मिला कर बस शक्ल सूरत और बनावट के अलावा दोनों बहनों मे कोई भी समानता नहीं थी.....लेकिन दोनों मे प्यार नहीं था ये कहना भी गलत होगा.....अपने स्कूल और कॉलेज के दौरान विश्वमित्रा का करीब 10-15 लड़कों से अफेयर रहा होगा....लेकिन उसे इस बात का कोई अफसोस या कोई ग्लानि नहीं थी....उसका फंडा बिलकुल साफ था.... जहां भी प्यार मिले लूट लो...लेकिन फिर भी न जाने क्यूँ वो हमेशा सच्चे प्यार को तरसती रही....विश्वमित्रा ने प्यार को हमेशा एक प्रतियोगिता समझा.... जो लड़का उसको पसंद आया वो अगर एक सप्ताह के भीतर इसका दीवाना नहीं बना तो उसे ये अपनी हार लगती.... अगर लड़का भी उसके प्रति आकर्षित हो गया तो उसका सारा प्यार लूट कर उसे तड़पता छोड़ वो आगे बढ़ जाती अपने अगले प्यार कि तलाश मे.....
फोन का नंबर डायल कर उसने अपने गले को कुछ खँखारा....
उधर से फोन के उठते ही एक आदमी कि कुछ गंभीर सी आवाज़ आई....हैलो.....”“हैलो...क्या मैं अविनाश से बात कर सकती हूँ????....” बड़ी मादकता से पूछा उसने....
हाँ मैं अविनाश बोल रहा हूँ...आप कौन???...” रुचि दिखाते हुए अविनाश ने पूछा....
लीजिये...अब ये दिन आ गए हैं कि आप हमारी आवाज़ भी नहीं पहचानेंगे....ज़रा और इठला गयी वो....
आई एम सौरी....लेकिन मैं सच मे आपको पहचान नहीं पा रहा हूँ...प्लीज अपना नाम बता दीजिये...मुस्कुरा दिया अब अविनाश भी...
हम तो आपकी इसी अदा के दीवाने बने बैठे हैं और तो कोई कदर ही नहीं है हमारी...खुमारी आवाज़ मे भर कर अलसा गयी वो....
आप??? अच्छा....विश्वमित्रा जी....अब कुछ सकपका गया अविनाश
मैंने तुमको कितनी बार समझाया है की मुझे ‘जी’ मत कहा करो....तुम तो मुझे पराया ही कर देते हो अवि....
और मैंने तुम्हें कितनी बार समझाया है की मुझसे इस बेशर्मी से बात मत किया करो....और अब तो मैं तुम्हारी बहन का होने वाला पति हूँ...फॉर गॉड सेक...विश्वमित्रा...चीख पड़ा अब तक संयमित अविनाश....
लेकिन अब तो मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ...नहीं देख सकती तुम्हें किसी और का होते हुए...और फिर वो कोई और कोई भी हो...चाहे मेरी अपनी बहन ही....बरस पड़ी वो भरे हुए मेघ की तरह...
बात को समझो विश्वमित्रा... तुम एक शादीशुदा औरत हो और मेरी अच्छी दोस्त भी...अब कुछ शांत हुआ अविनाश भी... मैं तुमसे शादी तो नहीं कर सकता लेकिन हाँ तुम्हारी बाकी जरूरतें पूरी ज़रूर कर सकता हूँ....” हँसते हुए चुटकी ली अब अविनाश ने....
बिना मुझे अपना नाम दिये मेरे बदन पर अपनी फतेह की पताका लहराना चाहते हो??? मुझे तो मंजूर है...सपाट स्वर मे विश्वमित्रा ने अपना निर्णय सुनाया....
अररे...मैं तो बस तुम्हें छेड़ रहा था...वैसे मुझे कुछ ज़रूरी काम है...मैं बाद मे बात करता हूँ...उसे लगभग टाल दिया अविनाश ने....

अविनाश का उनकी ज़िंदगियों मे आगमन थी तो एक बेहद साधारण घटना लेकिन इस घटना ने उनका जीवन अस्त व्यस्त कर दिया था.... उस वक्त विश्वमित्रा एम कॉम और श्यामली एम बी ए फ़ाइनल इयर मे थे.....अविनाश प्राकृतिक दृश्यों की फोटोग्राफी करता था और उसी से अपना जीवन यापन करता था.... जब वो उदयपुर आया तो उसे रहने के लिए एक जगह चाहिए थी.... कुछ दिनों की मशक्कत के बाद वो विश्वमित्रा और श्यामली के घर किराए पर रहने आया...लगभग हमउम्र होने के कारण उन तीनों की अच्छी जमने लगी थी...साथ साथ घूमतेमूवी जातेछत पर बैठ घंटो बातें करतेलड़ते और एक दूसरे को जी भर कर चिढ़ाते.....अविनाश श्यामली की और थोड़ा सा आकर्षित होने लगा था....उसकी बेपरवाही और अनजानी चहक उसे दीवाना बनाने लगी थीं...ये बात विश्वमित्रा को समझ मे आ रही थी...उसे अविनाश कुछ खास पसंद नही था लेकिन अपनी बहन को मिलते आकर्षण ने उसे पागल कर दिया...
उसे अब अविनाश किसी भी हाल मे चाहिए था...अपने लिए नहीं...बस अपनी बहन को नीचा दिखाने के लिए.....   (जारी.....)

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